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17 सितंबर 2015

गिलोय क्या है?

गिलोय के स्वास्थ्य लाभ



Giloe


















गिलोय की पत्ती इतनी गुणकारी है कि इसका नाम अमृता रखा दिया गया है। इसकी पत्तियों में शामिल है कैल्शियम, प्रोटीन, फास्‍फोजूस और तने में स्टार्च की मात्र ज्यादा पाया जाता है। यह वात, कफ और पित्तनाशक भी होती है। गिलोय जिश्म की बीमारी प्रतिरोधक शक्ति को बुत तेजी से बढ़ाती है। और साथ ही इसमें एंटीबायोटिक एवं एंटीवायरल तत्‍व भी मौजूद है।

ब्लड की कमी दूर करें

गिलोय जिश्म की बीमारी प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाता है और जिश्म में ब्लड की कमी को दूर करता है। इसके लिए प्रतिदिन सुबह-शाम गिलोय का जूस घी या शहद मिलाकर इस्तेमाल करने से जिश्म में ब्लड की कमी दूर होती है।

बुखार में फायदेमंद

गिलोय एक रसायन है जो रक्तशोधक, ओजवर्धक, हृदयबीमारी नाशक ,शोधनाशक और लीवर टोनिक भी है। गिलोय के जूस में शहद मिलाकर लेने से बार-बार होने वाला बुखार जड़ से ठीक हो जाता है। या गिलोय के जूस में पीपल का चूर्ण और शहद को मिलाकर लेने से तेज बुखार तथा खांसी ठीक हो जाती है।

पीलिया में फायदेमंद

गिलोय का इस्तेमाल पीलिया बीमारी में भी बहुत फायदेमंद होता है। इसके लिए गिलोय का एक चम्मच चूर्ण, काली मिर्च अथवा त्रिफला का एक चम्मच चूर्ण शहद में मिलाकर चाटने से पीलिया बीमारी में लाभ होता है। या गिलोय के पत्तियों को पीसकर उसका जूस निकाल लें। एक चम्‍मच जूस को एक कप मट्ठे में मिलाकर सुबह-सुबह लेने से से पीलिया ठीक हो जाता है।

जलन दूर करें

अगर आपके पैरों में जलन या लहर होती है और बहुत इलाज करने के बाद भी आपको कोई ज्यादा फायदा नहीं हो रहा है तो आप गिलोय का इस्‍तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए गिलोय के जूस को नीम के पत्ते एवं आंवला के साथ मिलाकर काढ़ा बना लें। प्रतिदिन 2 से 3 बार इस काढ़े का इस्तेमाल करें इससे हाथ पैरों और जिश्म की जलन दूर हो जाती है।

कान दर्द में फायदेमंद

गिलोय के पत्तियों के जूस को गुनगुना करके कान में डालने से कान का दर्द भी ठीक होता है। और इसके साथ ही गिलोय को पानी में घिसकर और गुनगुना करके दोनों कानों में दिन में दो या तीन बार डालने से कान का मैल बहार निकल जाता है। उल्टियां

उल्टियां में फायदेमंद

गर्मियों में कई लोगों को उल्‍टी की समस्‍या होती हैं। ऐसे मरीजों के लिए भी गिलोय बहुत फायदेमंद होता है। इसके लिए गिलोय के जूस में मिश्री या शहद मिलाकर दिन में दो बार लेने से से गर्मी के कारण से आ रही उल्टी रूक जाती है।

पेट के रोगों में फायदेमंद

गिलोय के जूस या गिलोय के जूस में शहद मिलाकर इस्तेमाल करने से पेट से संबंधित सभी बीमारी ठीक हो जाते है। इसके साथ ही आप गिलोय और शतावरी को साथ पीस कर एक कप पानी में मिलाकर पका लें । जब उबाल कर काढ़ा आधा बचे तो इस काढ़े को सुबह और शाम पीयें।

खुजली दूर भगाएं

खुजली अक्‍सर रक्त विकार के कारण होती है। गिलोय के जूस लेने से से रक्त विकार दूर होकर खुजली से छुटकारा मिलता है। इसके लिए गिलोय के पत्तियों को हल्दी के साथ पीसकर खुजली होने वाले जगह पर लगाया जाया सुबह-शाम गिलोय का जूस शहद के साथ मिलाकर पीएं।

आंखों के लिए फायदेमंद

गिलोय का जूस आंवले के जूस के साथ मिलाकर लेना आंखों के रोगों के लिए फायदेमंद होता है। इसके इस्तेमाल से आंखों के रोगों तो दूर होते ही है और साथ ही आंखों की रोशनी भी बढ़ती हैं। इसके लिए गिलोय के जूस में त्रिफला को मिलाकर काढ़ा यानि चाय के तरह बना लें। इस काढ़े में पीपल का चूर्ण और शहद मिलकर सुबह-शाम इस्तेमाल करें।

मोटापा कम करें


गिलोय मोटापा को  कम करने में भी सहायता करता है। मोटापा को कम करने के लिए आप  गिलोय और त्रिफला का चूर्ण को सुबह और शाम नियमित रूप से शहद के साथ लें। या गिलोय के, हरड़, बहेड़ा, और आंवला इन सब को मिला कर काढ़ा बनाकर इसमें शिलाजीत मिलाकर पकाएं और इस्तेमाल करें। इस का नियमित इस्तेमाल से मोटापा रुक जाता है।

16 सितंबर 2015

डेंगू क्या है ? (Ayurvedic treatment for hair fall in hindi)

डेंगू बुखार होने के कारण क्या है ?

Ayurvedic treatment for hair fall in hindi

Dengue Fever


इस बीमारी  के कारण, मच्छरों के द्वारा मानव जिश्म  में वायरस  पहुंचता हैं। डेंगू बुखार एक बड़ी बीमारी हैं जो एडीज इजिप्टी मच्छरों के काटने से होता हैं। इस बीमारी  में तेज बुखार के साथ जिश्म  के उभरे चकत्तों से खून निकलता हैं। डेंगू बुखार तथा डेंगू बुखार ब्लडस्रावी बुखार बहुत मांसपेशीय तथा ब्लड से सम्बंधित बीमारी है ये उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र मे तथा अफ्रीका मे मिलते है, ये चार प्रकार के निकटता से जुडे वायरस  से होते है, जो फ्लेविविराइड फॅमिली के होते है, बहुधा भी उन्हीं क्षेत्रों मे फैलता है जिनमे मलेरिया फैलता है, लेकिन मलेरिया से पृथकता यह है कि यह शहरी क्षेत्र मे फैलता है जिनमे सिंगापुर, इण्डोनेशिया, फिलीपींस, इंडिया और ब्राजील जैसे देश भी शामिल है, प्रत्येक वायरस  इतना भिन्न होता है किसी एक से संक्रमण के बाद भी अन्य के विरूद्ध सुरक्षा नहीं मिलती पति है, तथा जहाँ तहां ह महामारी के रूप मे फैलता है वहाँ एक समय मे अनेक प्रकार के वायरस सक्रिय हो सकते है, डेंगू बुखार  मानव मे एडिस एजेप्टी नामक मच्छर के काटने से  फैलता है [एडिस एलबोपिकटस से भी]यह मच्छर हमेशा दिन मे काटता है।


डेंगू के लक्षण

यह बीमारी  अचानक तेज बुखार  के साथ शुरू होता है, जिसके साथ साथ तेज सिर में दर्द होता है, मांसपेशियों तथा जोडों मे भी भयानक तेज दर्द होता है जिसके चलते ही इसे हड्डी तोड़ बुखार भी कहते हैं। इसके अलावा जिश्म  पर लाल चकते भी बन जाते है जो सबसे पहले पैरों पे फिर चेस्ट पर तथा कभी कभी सारे जिश्म  पर फैल जाते है। इसके अलावा पेट खराब हो जाना, उसमें दर्द का होना, वीकनेस, दस्त लगना, ब्लेडर की समस्या, लगातार चक्कर आना, भूख ना लगना भी लक्षण के रूप मे ज्ञात है।
कुछ मामलों मे ये लक्षण हल्के होते है जैसे लाल चकते ना पडना, जिसके चलते इसे इंफ्लूएंजा का प्रकोप मान लिया जाता है या कोई और  वायरस  संक्रमण से होता है, यदि कोई इन्सान प्रभावित क्षेत्र से आया हो और इसे नये क्षेत्र मे ले गया हो तो बीमारी की पहचान ही नहीं हो पाती है और रोगी यह बीमारी  केवल मच्छर या ब्लड के द्वारा दूसरे को दे सकता है वह भी सिर्फ  तब जब वह बीमार ग्रस्त हो।
आम तौर पर ये बुखार  ६-७ दिन रहता है बुखार  समाप्ति के समय फिर से कुछ समय के लिए बुखार वापस आता है, जब तक रोगी का तापमान सामान्य नहीं होता है तब तक उसके ब्लड मे (Platelets) की कम रहती है।

जब डेंगू बुखार हैमरेज बुखार  होता है तो बुखार  बहुत तेज हो जाता है ब्लडस्त्राव शुरू हो जाता है, ब्लड की कमी हो जाती है, जिसके कारण थ्रोम्बोसाटोपेनिया हो जाता है, कुछ मामलों में डेंगू बुखार भयानक दशा [डेंगू बुखार शोक सिंड्रोम] हो जाती है जिसमे मृत्यु की खतरा बढ़ जाती है।

डेंगू बुखार का पहचान

डेंगू बुखार को Break Bone बुखार के नाम से भी जाना जा रहा है। डेंगू बुखार  की पहचान ज्यादा तर आज कल इन लक्षणों के आधार पर डाक्टर करते है, बहुत तेज बुखार  जिसका कोई और  स्थानीय कारण समझ नहीं आये, सारे जिश्म  पर गुलाबी चकते पड जाना, खून मे Platelets की संख्या लगातार कम हो जाना। बच्चो मे डेंगू बुखार के लक्षण साधारण जाड़ा, बुखार एंव उलटी हो सकते है।
Ø  लगातार सिरदर्द होना, चक्कर आना, भूख ना लगना
Ø  ब्लीडिंग की प्रवृति (अपने आप छिल जाना, नाक, कान से, से खून रिसना, खूनी पखाना और खून की उल्टी आना)
Ø  ब्लड  मे (Platelets) की संख्या कम होना [प्रतिघन सेमी ब्लड मे एक लाख से कम होना]।
Ø  प्लासमा रिसाव होने के साक्ष्य मिलना [हेमोट्रोक्रिट मे 20% से अधिक वृद्धि या हीमाट्रोक्रिट मे 20% से अधिक गिरावट]।
डेंगू बुखार शोक सिन्ड्रोम को परिभाषित किया गया है
Ø  धीरे धीरे नब्ज का चलना
Ø  नब्ज का दबाव कम होना
Ø  जड़ा लगकर बुखार आना |
४ कुछ लोगो मे यह बीमारी  बुखार के १-२ दिन मे आलोचनात्मक चरण तक पहुच जाता है। इस दौरान सीने और उदर गुहा में (लिक्विड) जमा हो जाते है। इस प्रचलन से जिश्म  के महत्वपूर्ण अंगों मे (लिक्विड) की कमी हो जाती है। आमतौर पर (डेंगू बुखार आघात सिंड्रोम) शॉक और ब्लडस्राव (डेंगू बुखार ब्लडस्रावी बुखार ) डेंगू बुखार के ५-६ प्रतिशत मरीजो मे ही पाए जाते है। लेकिन जो लोग पहले से डेंगू बुखार वायरस के अन्य सीरमप्रकारों (माध्यमिक संक्रमण  से संक्रमित है उन लोगो मे शॉक और ब्लडस्राव के पाए जाने कि संभावना बढ़ जाती है| सीरोलोजी तथा पोलिमर चेन रिक्शन के अध्ययन उपलब्ध है जिनके आधार पर डेंगू बुखार की जाँच की जा सकती है अगर डॉक्टर लक्षण पाकर इसका संदेह व्यक्त करे।


                     

डेंगू के इलाज

डेंगू बुखार का इलाज आम तौर पर चिकित्सकीय प्रक्रिया से किया जाता है, लेकिन इसे दूसरे वायरस -जनित रोगों से अलग कर पाना मुशिकल है। इलाज का मुख्य तरीका सहायक चिकित्सा देना ही है, मुंह के द्वारा तरल देते रहना क्योंकि अन्यथा पानी की कमी हो सकती है, नसों से भी तरल दिया जाता है, यदि ब्लड मे (Platelets) की संख्या बहुत कम हो जाये या ब्लड स्त्राव शुरू हो जाये तो ब्लड चढाना भी पड़ सकता है, आंतो मे ब्लडस्त्राव होना जिसे मेलना की मौजूदगी से पहचान सकते है मे भी ब्लड चढाना पड सकता है। डेंगू का सबसे अच्छा घरेलू इलाज पपीते की पत्ती का रस एव बकरी का दूध अधिक से अधिक किया जाये इससे डेंगू के मरीज को बड़ा फायदा होता| इससे प्लातेलेट्स एकदम से बढ़ जाती है और मरीज जल्द ठीक हो जाता है | इसके इलावा इस संक्रमण मे एस्प्रीन या अन्य गैर स्टेरोईड दवाएँ लेने से ब्लडस्त्राव बढ जाता है इसके जगह पर संदिग्ध मरीजों को पेरासिटामोल देनी चाहिए।

नियंत्रण और बचाव


डेंगू बुखार के रोक्थाम के लिए यह जरुरी है कि डेंगू बुखार के मछरो (मोस्कीटो) के काटने से बचे, तथा इन मछरो (मोस्कीटो) के फैलने पर रोकथाम रखा जाए। ए ईजिप्टी को नियंत्रित करने की प्राथमिक विधि उसके घर को नष्ट करने से है।यह पानी के कंटेनर को  खाली करने या इन क्षेत्रों मे कीटनाशकों के उप्योग से किया जात है। पर्यावरण संशोधन के माध्यम से पानी के खुले संग्रह को ढक कर रखना ही रोकथाम का मुख्य तरीका है क्योंकि कीटनाशकों और नियंत्रण एजेंटों से आपके सेहत पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह उपाय माने गये है। लोग पूरे वस्त्र पहनकर् तथा मच्छरदानी  का प्रयोग करके इससे बच सक्ते है।

14 सितंबर 2015

पथरी क्या है ?

पथरी कैसे बनती है


Stone










शारीर में कैल्शियम की मात्रा बढ़ जाने के कारण से होती है | ये मुख्यता शारीर में दो जगह बनती है
1.      किडनी में
2.      पित्त में
किडनी स्टोन: सबसे पहले आप अल्ट्रासाउंड करवा लें| अगर आपको किडनी में पथरी है तो आप ज्यादा से ज्यदा पानी (6-7लीटर) हर रोज पीने की कोशिश करें| ज्यादा पानी पीने से किडनी से पथरी पेशाब के रास्ते निकल सकती है| पथरी का एक इलाज ये भी है की पत्थरचट नाम की एक दावा बाज़ार में जड़ी बूटी की दुकान पे मिल सकती है उसे खरीद कर ले आइये  और पत्थर चट के 20-30 पत्ते को पानी में उबाल कर चाय की तरह काढ़ा बना ले और इसे रोज पीजिये इससे भी पथिर ख़तम हो सकती है| और इसका इलाज होमियोंपैथ में बहुत अच्चा होता है |

लक्षण:-
1.      किडनी के पास तेज द्रर्द होना|
2.      पेशाब में जलन एव रुक रुक के अना|
3.      उलटी आना |
पित्त की पथरी: सबसे पहले आप अल्ट्रासाउंड करवा लें| अगर आपको में पित्त की थैली में पथरी है तो आप हल्दी ,चुकंदर, नाशपाती और एप्पल का रस एव पुदीना का सेवन ज्यादा करें और Vitamin C लें इससे पित्त की पथरी ख़तम हो जाती है | और अगर इससे कम न हो तो किसी अच्छे डॉक्टर से परामर्श ले और इसका इलाज जल्द से जल्द करवा ले | आपका शारीर ही आपका सब कुछ है | cc c
लक्षण:-
1.      पित्त के पास तेज द्रर्द होना|

2.      उलटी आना|

लू कैसे लगती है ( Sunstroke)

लू  कैसे लगती है और इससे कैसे बचे?

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लू (Sun stroke) बहुत ज्यादा धूप या गर्मी में काम करने से लगती है | इन्सान की शारीर की बनावट ऐसी होती है की शारीर में ज्यादा गर्मी पसीने के माध्यम से निकलती  रहता है  जिससे शारीर का तापमान सामान्य बना रहता है| लेकिन लू की स्तिथि में शारीर का कुकिंग सिस्टम सुचारू रूप से काम करना बंद कर देता है, जिसके कारण तापमान कण्ट्रोल नहीं हो पता है और शारीर का तापमान बढ़ जाता है और लू लग जाती है| अगर इस तापमान को बाहरी सहायता देकर कण्ट्रोल न किया गया तो मरीज की हालत बहुत ख़राब हो सकती है| इसीलिए जरूरी है की इस बीमारी के लक्षण  को जल्दी पहचान कर  इसका जल्द इलाज किया जाये|

आइये जानते है इसके लक्षण
Ø  शारीर का तापमान 102 से 103 डिग्री होती है|
Ø  पेशाब का रंग पीला होना |
Ø  शारीर में पानी का मात्र कम होना |
Ø  बार बार प्यास लगना|
Ø  उलटी का आना |
आइये जानते है इसके उपचार
Ø  पानी का मात्रा बढ़ा दे |
Ø  कच्चे आम का शरबत सुबह शाम ले|
Ø  धुप में न निकले |
Ø  दिन में कम से कम दो बार नहाये|
Ø  खाने में हलकी चीजे लें |
Ø  ग्लुकोन डी का सेवन करें |


और अगर इन  सब चीजो से सुधार न हो तो नजदीकी डॉक्टर से संपर्क करें |

13 सितंबर 2015

टाइफाइड क्या है ?


जानिये टाइफाइड क्या है ?

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आज कल टाइफाइड एक जानलेवा बीमारी है, इस बीमारी में बहुत तेज बुखार आता है और कई  दिनों तक बना रहता है। टाइफाइड बुखार कम-ज्यादा होता रहता है, मगर  कभी भी सामान्य नहीं होता। टाइफाइड का इन्फेक्शन होने के तक़रीबन एक सप्ताह बाद रोग के लक्षण नजर आने लगते हैं। कई बार दो-दो माह बाद तक इसके लक्षण दिखते हैं। टाइफाइड और बुखार का घरेलू इलाज से बचाव किया जा सकता है।

टाइफाइड बुखार से बचाव के घरेलू नुस्खे-


Ø कच्चा अदरक का रस, पान का रस, और शहद को बराबर बराबर मात्रा में मिलाकर सुबह-शाम पीने से जल्द आराम मिलता है।
Ø यदि आपको जुकाम या सर्दी/गर्मी में बुखार हो तो तुलसी एव  मुलेठी, गाजवां, शहद और मिश्री को पानी में मिलाकर काढा बनाएं और दिन में दो बार पीएं। इससे जुकाम सही हो सकता है और बुखार भी जल्द ठीक हो जाता है।
Ø गर्मी के दिनों में टायफायड होने पर लू लगने के वजह से  बुखार होने का खतरा बना रहता है। ऐसे में आप कच्चे अमियाँ को आग में पकाकर इसका रस पानी के साथ मिलाकर दिन में दो बार पीएं।
Ø जलवायु के परिवर्तन की वजह से बुखार होने पर  तुलसी की चाय पीने से आराम मिलता है। इसके लिए 20-25 तुलसी की पत्तियां, 20-25 काली मिर्च, थोड़ी सी अदरक, थोड़ी सी दालचीनी को पानी में डालकर खूब खौलाएं उसके बाद इस मिश्रण को आंच से उतारकर छानें और इसमें मिश्री मिलाकर गर्म-गर्म पीएं।
Ø तुलसी और सूर्यमुखी के पत्तों का रस भी पीने से टायफायड बुखार ठीक हो जाता हैं। करीब तीन दिन तक सुबह-सुबह इसका इस्तेमाल करें। 

टायफायड के अलावाबुखार के कई और वजह भी हो सकते हैं,  ऐसे में कुछ बातों का ध्यान रखें


Ø बुखार में रोगी को ज्यादा  से ज्यादा आराम की जरूरत होती है। खाने एवं पीने  का खास ख्याल रखें। बुखार होने पर आप दूध, साबूदाना, चाय, आदि हल्की चीजें खाएं। मिश्री का शर्बत, मौसमी का रस, और कच्चे नारियल का पानी अवश्य पीये। 
Ø  पानी अधिक से अधिक  पीएं और पीने के पानी को पहले गर्म करें और उसे ठंडा होने के बाद पीये। ज्यादा  पानी पीने से शरीर का जहर पेशाब और पसीने के रूप में शरीर से बाहर आसानी से निकल जाता है।
Ø लहसुन की कली 5-10 ग्राम तक काटकर तिल के तेल में या घी में तलकर सेंधा नमक के साथ मिला कर खाने से हर तरह  का बुखार ठीक होता है।
Ø तेज बुखार आने पर सर  पर ठंडे पानी का कपड़ा रखें तो बुखार जल्द उतर जाता है,और बुखार की गर्मी कभी भी सिर पर नहीं चढ़ती है।
Ø फ्लू में प्याज का रस बार-बार पीने से बुखार जल्दी उतर जाता है, और कब्ज में भी बड़ा आराम मिलता है।
Ø पुदीना और अदरक का काढ़ा पीने से भी बुखार उतर जाता है। काढ़ा को पीकर एक दो घंटे आराम करें, बाहर हवा में कभी न जाएं।


अगर घरेलू दवाओं से आपको आराम न मिले, तो तुरंत नजदीकी  डॉक्टर से संपर्क करें और उसके निर्देशानुसार अपना इलाज करवाएं।